भायंदर प्रवास के दूसरे दिन भी बरसते मेघों के साथ अमृतवर्षा में अभिस्नात हुए श्रद्धालु
तपागच्छ के वज्रतिलकजी ने किए महातपस्वी के दर्शन
भायंदर। मायानगरी मुम्बई के आसमान में लगातार तीन दिन से छाए बादल अभी भी लगातार बरस रहे हैं। बरसात से सामान्य जन-जीवन अस्त-व्यस्त तो अवश्य है, किन्तु उमस से लोगों को राहत मिल गई है। हालांकि ऐसी बरसात के मुम्बईवासी तो आदि हैं, किन्तु जिनके लिए इसका पहला अनुभव है, उनके लिए यह विकट समस्या-सी दिख रही है। इन बरसते मेघों के मध्य ही भायंदरवासियों के आंतरिक संताप को हरने और उन्हें सन्मार्ग प्रदान करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी पधारे तो अपने आराध्य से आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त कर श्रद्धालु निहाल हो उठे।
![](https://pravasisandesh.com/wp-content/uploads/2023/06/f1668c57-bf0f-4c5d-8d34-e5f0be07d902-1024x677.jpg)
सोमवार को भी आसमान में छाए काले और घने बादलों ने सूर्य के दर्शन नहीं होने दिए। बरसती बूंदें लोगों के तन-बदन को सराबोर बना रहे थे तो वर्षों बाद अपने आराध्य की अभिवंदना से पुलकित, प्रमुदित भायंदरवासी गुरुदर्शन और अपने सुगुरु की अमृतवर्षा से तृप्ति पाने को आतुर नजर आ रहे थे। तभी तो अग्रवाल गार्डेन में बना ‘महाश्रमण समवसरण’ श्रद्धालु जनता से जनाकीर्ण बन गया। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने भायंदरवासियों को उद्बोधित किया।
![](https://pravasisandesh.com/wp-content/uploads/2023/06/a0fa5a44-f2c5-4805-822f-e1faf3ffc97f-1024x675.jpg)
तदुपरान्त जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित जनता को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आत्मा संसार में परिभ्रमण करती रहती है। इस आत्मा ने अनंत बार जन्म-मृत्यु को प्राप्त किया है और अभी भी परिभ्रमण कर रही है। जन्म के साथ ही मृत्यु भी सुनिश्चित हो जाता है, मानों जन्म अकेला नहीं, मृत्यु को साथ लेकर आता है। प्राणी जन्म लेता है और जीवन को जीते-जीते एक दिन अवसान को प्राप्त हो जाता है। प्रश्न हो सकता है कि इस आत्मा के इस परिभ्रमण का कारण क्या है? शास्त्रों में इसका उत्तर प्रदान करते हुए कहा गया है कि कषायों अर्थात् क्रोध, मान, माया, लोभ, लालसा, इच्छाओं के कारण आत्मा इस संसार में परिभ्रमण करती रहती है।
![](https://pravasisandesh.com/wp-content/uploads/2023/06/7d458b6d-64ec-43a8-ac83-374c0901fa8e-1024x671.jpg)
आदमी के भीतर भोग चेतना और योग चेतना होती है। आदमी पदार्थों के भोग की इच्छा करता है। शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श के साथ आदमी को अच्छी चीजें खाने को चाहिए। भले ही वह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो, किन्तु जिह्वा के स्वाद के लिए अच्छा है तो आदमी स्वास्थ्य को गौण कर उसका भोग कर लेता है। यह भोग चेतना आत्मा की चेतना का पतन करने वाली होती है।
![](https://pravasisandesh.com/wp-content/uploads/2023/06/2e9ed6e4-30c1-498a-bb98-037fb1447f7f-1-1024x672.jpg)
भोग चेतना के साथ मनुष्यों में योग चेतना भी देखने को मिलती है। कितने-कितने लोग पदार्थों के भोग का मोह छोड़कर साधुत्व को स्वीकार कर लेते हैं। आदमी साधु न भी बन सके तो कितने-कितने गृहस्थ जीवन में भी जैन शासन के अनुसार कोई बारहव्रती बन जाते हैं तो कोई-कोई सुमंगल साधना में लग जाते हैं या कोई प्रतिमा साधना में लग जाते हैं अर्थात अनेक रूपों में योग साधना, योग चेतना जागृत होती है और वे योग साधना में लग जाते हैं। भोग चेतना और योग चेतना मानों दो मार्ग हैं। योग का भी अपना स्तर होता है। भगवान महावीर ने योग साधना की और भी लोग अपने-अपने ढंग से योग साधना करते होंगे, साधु भी योग साधना करते हैं किन्तु योग साधना में अनेक तारतम्य होते हैं। योग करते-करते जहां आयोग की अवस्था आ जाती है, वह योग साधना का चरम हो जाता है। योग की साधना का चरम 14वें गुणस्थान अर्थात आयोग साधना प्राप्त हो जाता है। वर्तमान समय में सात गुणस्थानों से आगे की योग साधना नहीं हो सकती। इसलिए आदमी सातवें गुणस्थान की भी योग साधना तक पहुंच जाए तो बहुत बड़ी बात हो सकती है। आदमी को इसके लिए पुरुषार्थ करने का प्रयास करना चाहिए। साधु-साध्वियों को सातवें गुणस्थान की प्राप्ति के लिए पुरुषार्थ और प्रयास करना चाहिए।
गृहस्थ लोग भी अपनी साधना को प्रखरता की ओर ले जाने का प्रयास करना चाहिए। सम्यक् दृष्टिकोण, सम्यक् आस्था और सम्यक् दर्शन हो और विश्वास हो जाए तो योग की चेतना का विकास हो सकता है। जो आदमी ज्यादा धर्म-ध्यान में समय न भी लगाए तो अणुव्रत के समान्य नियमों को धारण करने का प्रयास करे। जीवन में ईमानदारी हो, कार्यों में नैतिकता, प्रमाणिकता रहे तो भी आत्मा का कल्याण संभव हो सकता है। यह भी एक तरह की योग साधना है। इस प्रकार आदमी अणुव्रतों का पालन कर भी योग चेतना के विकास की दिशा में आगे बढ़ सकता है।
आचार्यश्री के दर्शनार्थ उपस्थित तपागच्छ आचार्य प्रेमसूरिजी के शिष्य ज्योतिषाचार्य वज्रतिलकजी ने आचार्यश्री को वंदन कर उनके समक्ष विराज गए। उन्होंने आचार्यश्री की अभिवंदना में अपनी अभिव्यक्ति दी। गुरुदर्शन करने वाली साध्वी चन्दनबालाजी ने अपने हृदयोद्गार व्यक्त करते हुए सहवर्ती साध्वियों के साथ गीत का संगान किया तो आचार्यश्री ने मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। संसारपक्ष में भायंदर से संबद्ध मुनि सिद्धकुमारजी ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति देते हुए आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। कार्यक्रम में भाजपा जिलाध्यक्ष डॉ. रवि व्यास, नगरसेवक सुरेश खण्डेलवाल, नगरसेवक ध्रुवकिशोर पाटिल व बोधार्थी दिव्या फूलफगर ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ युवक परिषद ने गीत का संगान किया। तेरापंथ कन्या मण्डल व तेरापंथ किशोर मण्डल ने अपनी-अपनी प्रस्तुति दी।