संकट मोचन संगीत समारोह गायन, वादन व नृत्य का दिखा संगम

दूसरे दिन कलाकारों ने हनुमत दरबार में दी एक से बढ़कर एक शानदार प्रस्तुति

सुरेश गांधी

वाराणसी। संकट मोचन संगीत समारोह की दूसरी निशा में दूरदराज से आएं कलाकारों ने एक से बढ़कर एक गायन, वादन व नृत्य की शानदार प्रस्तुतियां दी। बंगाल के पद्मभूषण पं. अजय चक्रवर्ती राग गायिकी रह किसी को झूमने पर विवश कर दिया। जग में कछु काम नर नरियन के वश में नाही.. जब ले करुणा न सींचे…, ठुमरी गीत आए न बालम… और चंद्रमा ललाट पर सोहे भुजंग गर… गाया तो हनुमत दरबार में बैठे श्रोता संगीत की दुनिया में डूबकी लगाते दिखे। उनके साथ तबले पर पं. कल्याण चक्रवर्ती और हारमोनियम पर पं. धर्मनाथ मिश्रा ने बेजोड़ जुगलबंदी की।
इसके बाद तानसेन वंश परंपरा और जयपुर के सेनिया घराने के कलाकार प्रो. राजेश शाह ने सितार पर राग झिंझोटी में आलाप जोड़ और झाला की प्रस्तुति से लोगों को मुग्ध कर दिया। इसी तरह लावण्या शंकर के भरतनाट्यम नृत्य की हर किसी ने सराहना की। उन्होंने राग मल्लारी से शिव की अराधना के बाद रामचरितमानस के प्रसंगों पर राम-राम जय राजा राम… गीत पर नृत्य करते हुए त्रेता युग के मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के रुपों का चित्रण किया। 45 मिनट की प्रस्तुति में लावण्या ने अपने भावों और शैली से श्रोताओं को मुग्ध कर दिया।


अमेरिका से आए 24 वर्षीय विवेक पंड्या की नजर और अंगुलियां लगातार 70 मिनट तक तबले से थिरकती रही, देख हर किसी की आंखे खुली की खुली रह गयी। अति द्रुत ताल में तबला वादन कर रहे विवेक ने थिरकिट से हनुमत दरबार को गुंजन से भर दिया। बनारस घराने से उठान, कायदा, आमद, टुकड़ा, रेला और परन बजाकर श्रोताओं को कई बार चौंकाया। हारमोनियम पर संगत काशी के मोहित साहनी ने की। बंगलूरू के प्रवीण गोडखिंडी ने अंत में कुछ ऐसा बजाया कि प्रस्तुति खत्म होने के बाद तक बांसुरी की ध्वनि गूंजती रही। पं. गोड़खिंडी ने खड़े होकर हाथ जोड़ा। इससे पहले उनकी बांसुरी की आवाज ने कभी विरह तो कभी वैराग्य की दुनिया में पहुंचाया।
प्रतिष्ष्ठित सितार वादक पं. पूर्वायन चटर्जी ने विश्व में आपकी ख्याति है, उसी के अनुरूप इन्होंने प्रस्तुत से श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया। इन्होंने राग जोग मं आलापचारी के पश्चात पहले झपताल व त्रिताल में गतकारी कर वादन को संक्षिप्त विराम दिया। इनके बाद इन्होंने श्री अनेय गाडगिल के सिन्न्थे साइजर में साथ देकर गरज आई मेघ बजाकर श्रोताओं को भी गवनाया। इनके साथ तबले पर पं. संजू सहाय ने अद्द्भुत युगलबंदी की। कोलकाता से पधारी श्रीमती सोहिनी राय चौधरी ने गायन के क्रम में पहले राग जोग में एकताल व तीनताल में दो बंदिशें गाने के पश्चात ठुमरी व भजन से गायन को विराम दिया। इनका गायन श्रुति मधुर रहा। इनके साथ तबले पर श्री देवज्योति बोस, संवादिनी पर मोहित साहनी व सारंगी पर गौरी बनर्जी ने कुशल सहभागिता निभायी।


मैसूर से पधारे (माधवप्पा बंधु) मंजूनाथ माधवप्पा-नागराज माधवप्पा ने कर्नाटक शैली में वायलिन वादन प्रस्तुत किया। इनलोगों ने राग अभोगी में वादन कर श्रोताओं को अभिभूत कर दिया। दिल्ली से पुधारे श्री रोहित पवार ने अपने कलाकारों के साथ कथक नृत्य प्रस्तुत किया। जिसमें शिव स्तुति को दर्शाकर नृत्य को विराम दिया। प्रस्तुति दर्शनीय रहा। दूसरी निशा की अंतिम प्रस्तुति रहा गायन। कलाकार थे पं. जसराज जी वरिष्ष्ठ शिष्य पं. नीरज पारिख। इन्होंने राग बैरागी भैरव में एक ताल व तीनताल मं बंदिश गाने के पश्चात हनुमान जी की एक रचना गाकर प्रस्तुति को विराम दिया। इनके साथ तबले पर श्री बिलाल खां सोनावी, संवादिनी पर मोहित साहनी व सारंगी पर विदूषी गौरी बनर्जी ने कुशल सहभागिता निभायी।

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